Monday, April 26, 2010

जितने मे मिलते है सपने ,उतने जेब मे दाम कहाँ


बचपन के यादो मे जीता ,जीवन एक तन्हाई है ,
हरपल ढूढो साथ मगर ,मिलती हरपल रुसवाई है,
अपनों की गफलत मे देखो ,केसे तनहा खड़े है सब ,
एसे लगता जेसे कोंई ,उडती से परछाई है,
है तो सब बाज़ार सजे पर उससे अपना क्या होगा ,
जितने मे मिलते है सपने ,उतने जेब मे दाम कहाँ ,
घर से निकले दफ़नाने को ,सपने यादें जज्बातों को ,
राह मे मिल गया भटका कोंई ,लगे उससे समझाने को ,
लगता था एक दिन आएगा ,जब वो हमको समझेंगे ,
जेसे -जेसे दिन बीते ,वो लगे हमें समझाने को ,
यादों के गटठर अब फोड़ें ,चलो कहें अब दूर चलें ,
एसा ना हो सिर्फ बचे ,एक दिन हमको पछताने को

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