Tuesday, May 5, 2009

बहुत दूर निकल गया हूँ मैं उन खुशिओं से

बहुत दूर निकल गया हूँ मैं उन खुशिओं से अब ,
नयी खुशिओं के पाने के तलाश में हूँ
वो माँ का आँचल,गौरैया चिडिया के पंखो को रंगना अब कहानी सी लगाती है
हाँ मै बहुत दूर निकल आया हूँ उन खुशिओं से...
आंगन में वो जो आम के पेड़ लगाये थे
अब उनमे बौर आ गए हैं
सच में उनसे बहुत दूर निकल आया हूँ.
नयी खुशिओं की तलास में

एक पतग के पीछे वो हमारा भागना ..
वो एक पतग लूटने की ख़ुशी
हा मै बहुत दूर निकल आया हूँ उस ख़ुशी से ...

हाथो मे वो एक रूपये का सिक्का लेकर
पूरा बाज़ार खरीदने की मासूम चाहत
कहाँ चली गयी वो खुशिएँ ...
हाँ कहाँ गयी वो खुशिएँ ...



2 comments:

SHRI said...

आपकी कवीता वास्तविकता के बहुत नजदीक है, आशा है आप ऐसे ही लिखते रहेंगे और मेरी आशा है की आपको नई खुशियों के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा.....
मेरी शुभकामनाये आपके साथ....

sandy said...

kya khoob likha hai