Thursday, August 26, 2010

आओ खोलें एक ऐसी दूकान, जहाँ पागलपंथी हो सामान..


आओ खोलें एक ऐसी दूकान,
जहाँ पागलपंथी हो सामान
सूरज पर जहाँ सेल लगी हो ,
चाँद पर प्राइस टेग टंगा हो
बतकही जहाँ मुफ्त मिलती हो,
सपनों की सस्ती कीमत हो
पेड़ों पर जहाँ टागें हो पकवान
आओ खोलें एक ऐसी दूकान

डिब्बों मे आकास मिले जहाँ
बादल के पावूच बिकतें हो ,
मेलों मई जहाँ मिलें तितलियाँ
जेबें भर भर मिलें बिजलियाँ
स्कूलों मे जहाँ उलटी गिनती
जहाँ सिखाएं बच्चे गेयान
आओ खोलें एक ऐसी दूकान

नेता जहाँ बहुत हो सस्ते
बेईमानो के बंद हो बक्से
जलेबी जहाँ हो सीधी बनती
टेडी मेडी जहा की रोटी
मोबाईल टावर अदने हो
दादा जिसपर टांगे धोती
जहा पड़ा हो उल्टा पुल्टा
खुशियों का सारा सामान
आओ खोलें एक ऐसी दूकान

खोवाबों की जहाँ आजादी हो
यादों पर जहाँ टैक्स हो भारी
रहो साथ यदि मिल जुल कर तो ,
टैक्स मे मिले छूट हर बारी
ठेलों पर जहाँ प्यार सजा हो
जहाँ दिलों का चलता हो फरमान
आओ खोलें एक ऐसी दूकान

2 comments:

Anonymous said...

bahut hi sudar panktiyan........pagal panthi dukan achchhi hai...

प्रवीण द्विवेदी की दुकान said...

danivad bhai ...